इस्कॉन या अंतर्राष्ट्रीय कृष्णभावनामृत संघ (International Society for Krishna
Consciousness - ISKCON), को "हरे कृष्ण आंदोलन" के नाम से भी जाना जाता है। इसे १९६६ में न्यूयॉर्क नगर में भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद ने प्रारंभ किया था। देश-विदेश में इसके अनेक मंदिर और विद्यालय है।
स्थापना एवं प्रसार
कृष्ण भक्ति में लीन इस अंतरराष्ट्रीय सोसायटी की स्थापना श्रीकृष्णकृपा श्रीमूर्ति श्री अभयचरणारविन्द भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपादजी ने सन् १९६६ में न्यू यॉर्क सिटी में की थी। गुरू भक्ति सिद्धांत सरस्वती गोस्वामी ने प्रभुपाद महाराज से कहा तुम युवा हो, तेजस्वी हो, कृष्ण भक्ति का विदेश में प्रचार-प्रसार करों। आदेश का पालन करने के लिए उन्होंने ५९ वर्ष की आयु में संन्यास ले लिया और गुरु आज्ञा पूर्ण करने का प्रयास करने लगे। अथक प्रयासों के बाद सत्तर वर्ष की आयु में न्यूयॉर्क में कृष्णभवनामृत संघ की स्थापना की। न्यूयॉर्क से प्रारंभ हुई कृष्ण भक्ति की निर्मल धारा शीघ्र ही विश्व के कोने-कोने में बहने लगी। कई देश हरे रामा-हरे कृष्णा के पावन भजन से गुंजायमान होने लगे।
अपने साधारण नियम और सभी जाति-धर्म के प्रति समभाव के चलते इस मंदिर के अनुयायियों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। हर वह व्यक्ति जो कृष्ण में लीन होना चाहता है, उनका यह मंदिर स्वागत करता है। स्वामी प्रभुपादजी के अथक प्रयासों के कारण दस वर्ष के अल्प समय में ही समूचे विश्व में १०८ मंदिरों का निर्माण हो चुका था। इस समय इस्कॉन समूह के लगभग ४०० से अधिक मंदिरों की स्थापना हो चुकी है।
नियम एवं सिद्धान्त
पूरी दुनिया में इतने अधिक अनुयायी होने का कारण यहाँ मिलने वाली असीम शांति एवं आनन्द है। यहाँ के मतावलंबियों को चार सरल नियमों का पालन करना होता है-
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तामसिक भोजन ( प्याज, लहसुन, मांस, आदि )
· नशा (शराब, भांग, गांजा, तम्बाकू ,गुटका, कैफीन आदि )
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अनैतिक आचरण (परपुरुष अथवा परस्त्री संग)
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जुआ, लाटरी,
सट्टा आदि का त्याग करना आवश्यक है
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एक दीक्षित भक्त को हरे
कृष्ण महा मंत्र की १६ माला करनी होती है. जो लोग दीक्षित नहीं है वो भी एक माला से भी शुरू कर सकते है. नाम जप
के अलावा भगवद गीता एवं श्रीमद भागवतम का अध्ययन भी महत्वपूर्ण है.
योगदान
भारत से बाहर विदेशों में हजारों महिलाओं को साड़ी पहने चंदन की बिंदी लगाए व पुरुषों को धोती कुर्ता और गले में तुलसी की माला पहने देखा जा सकता है। लाखों ने मांसाहार तो क्या चाय, कॉफी, प्याज, लहसुन जैसे तामसी पदार्थों का सेवन छोड़कर शाकाहार शुरू कर दिया है। वे लगातार ‘हरे राम-हरे कृष्ण’ का कीर्तन भी करते रहते हैं। इस्कॉन ने पश्चिमी देशों में अनेक भव्य मन्दिरेवं विद्यालय बनवाये हैं। श्रील प्रभुपाद का मुखय योगदान उनके द्वारा प्रदत वैदिक ग्रन्थ
है. इस्कॉन के अनुयायी विश्व में गीता एवं भागवतम आदि के द्वारा वैदिक धर्म एवं संस्कृति प्रसार कर रहे है।
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